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ममता से करुणा से / कैलाश गौतम

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लेखक: कैलाश गौतम

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ममता से, करुणा से, नेह से दुलार से

घाव जहां भी देखो, सहलाओ प्यार से।


नारों से भरो नहीं

भरो नहीं वादों से

अंतराल भरो सदा

गीतों संवादों से

हो जायेंगे पठार शर्तिया कछार से।


भटके ना राहगीर

कोई अंधियारे में

दीये की तरह जलो

घर के गलियारे में


लड़ो आर-पार की लड़ाई अंधकार से।


हाथ बनो, पैर बनो

राह बनो जंगल में

लहरों में नाव बनो

सेतु बनो दलदल में

प्यासों की प्यास हरो पानी की धार से।