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अहमदाबाद / अनिल जनविजय


इस शहर में
फिर से कोई हादसा
हुआ होगा

नहीं तो
इतना खामोश
और वीरान
क्यों पड़ा है यह

आदमी से
आदमी का
भरोसा उठ गया होगा

नहीं तो
इतना बेजुबां
और बेमज़ा
क्यों हुआ है यह

2001 में रचित