सुन्दर हैं विहग, सुमन सुन्दर,
मानव! तुम सबसे सुन्दरतम,
निर्मित सबकी तिल-सुषमा से
तुम निखिल सृष्टि में चिर निरुपम!
यौवन-ज्वाला से वेष्टित तन,
मृदु-त्वच, सौन्दर्य-प्ररोह अंग,
न्योछावर जिन पर निखिल प्रकृति,
छाया-प्रकाश के रूप-रंग!
रचनाकाल: अप्रैल’१९३५