Last modified on 24 दिसम्बर 2009, at 01:42

प्रतिप्रेम / शलभ श्रीराम सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:42, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण ("प्रतिप्रेम / शलभ श्रीराम सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह कि जिसकी मौत कभी नहीं होती
निर्दोष और निर्विकार है जो
किसी भी शरीर में रहे
किसी भी रूप में
किसी के पास
चिंता क्यों होती है उसको लेकर
क्यों होती है शंका अपने अहित की?

हित ही सधा न हो जिससे
कैसे करेगा अहित?
किसी भी शरीर में
किसी भी रूप में
किसी के भी पास रहकर
है तो निर्दोष
है तो निर्विकार
वह कि जिसकी मौत कभी नहीं होती।


रचनाकाल : 1991, विदिशा