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याद करना हर घडी़ उस यार का / वली दक्कनी

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रचनाकार: वली मोहम्मद 'वली'

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याद करना हर घड़ी उस यार का
है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बिमार का

आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नहीं
तिश्नालब हूँ शर्बत-ए-दीदार का

आकबत क्या होवेगा मालूम नहीं
दिल हुआ है मुब्तिला दिलदार का

क्या कहे तारिफ़ दिल है बेनज़ीर
हर्फ़ हर्फ़ उस मख़्ज़न-ए-इसरार का

गर हुआ है तालिब-ए-आज़ादगी
बन्द मत हो सुब्बा-ओ-ज़ुन्नार का

मस्नद-ए-गुल मन्ज़िल-ए-शबनम हुई
देख रुत्बा दीदा-ए-बेदार का

ऐ "वली" हो ना स्रिजन पर निसार
मुद्द'अ है चश्म-ए-गौहर बार का