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ग़ज़ल / शलभ श्रीराम सिंह

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बार-बार कहती हुई---कहानी नहीं है यह
कहानी की तरह सुनाती जा रही है मुझे
बताती जा रही है---घटना है कोई
घटती हुई बार-बार

कहानी से चलकर
चल कर घटना से
मेरी तरफ़ आ रही है वह
आवाज़ लगा रही है पीछे से
पीछे-पीछे चलती हुई।

खलल है यादों में
ख्वाबों में खलल है मेरे
खलल ख़याल में है
मुझमें इच्छा की तरह प्रवेश कर रही है वह
बार-बार कहती हुई--- कहानी नहीं है यह
मुझे चिराग की तरह जला रही है
अपने अंधेरों में।


रचनाकाल : 1992 विदिशा
इस कविता की विषय-वस्तु का एक स्थल पर ग़ज़ल के रूप में भी इस्तेमाल किया गया है --शलभ।