कल तक जो कुछ भी था
कहाँ है आज कुछ भी वैसा?
बेला के सफ़ेद फूल ने ले ली है
कल के सुर्ख़ गुलाब की जगह
ख़ुशबू तक में फ़र्क़ पड़ गया है।
तुम्हे, तुम्हारे वर्तमान के हवाले करता
होता हुआ अपने वर्तमान के हवाले
तुम्हारी अंजुरी में रखकर फूल
चला जा रहा हूँ मैं।
रचनाकाल : 1992, अयोध्या