Last modified on 6 फ़रवरी 2010, at 21:26

आवाज़ सुनी मेरी न रूदाद किसी ने / गोविन्द गुलशन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:26, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आवाज़ सुनी मेरी न रूदाद किसी ने
तरजीह न दी मुझको तेरे बाद किसी ने

परवाज़ से उसकी ये गुमाँ हो तो रहा था
पिंजरे से किया है उसे आज़ाद किसी ने

आता ही नहीं सामने पर्दे से निकलकर
वैसे उसे देखा भी है, इक-आद किसी ने

आँखों में उभर आया उसी वक़्त कोई अक़्स
जिस वक़्त किया मुझको कहीं याद किसी ने

दामन मेरा ख़ुशियों से सराबोर है यानी
की होगी मेरे वास्ते फ़रियाद किसी ने

इस शहर का अफ़साना कोई ख़ास नहीं है
आबाद किसी ने किया बरबाद किसी ने