Last modified on 19 अप्रैल 2010, at 20:56

जो सबसे पहले तुम्हारे पास पहुँचने की कोशिश करेगा / रवीन्द्र दास

Bhaskar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:56, 19 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: वह, जो सबसे पहले तुम्हारे पास पहुँचने की कोशिश करेगा सदी का सबसे ख…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह, जो सबसे पहले तुम्हारे पास पहुँचने की कोशिश करेगा

सदी का सबसे खतरनाक आदमी होगा

चाहे जीता हुआ या फिर हरा हुआ

रक्ताभ आँखें, ओठों पर मुस्कान और पंजों में थरथराहट लिए

जो तुम्हे जीतना चाहेगा

नहीं कर पाएगा यात्रा नियत रास्तों से कभी

बुद्ध, शंकर , कबीर या गाँधी की तरह

नहीं करेगा कभी कोशिश

फटे वक्त पर पैबंद लगाने की

प्रत्युत फटे वक्त की दरार से

निकल भागेगा उस पार वह

नियमित नहीं कर पाएगी तुम्हारी व्यवस्था उसे

एक वाही होगा

जो भूल चुका होगा हँसना , रोना या सहमना

कर्ण या अर्जुन की मानिंद

नहीं लगाएगा निशाना मछली की आँख पर

वह तो चलाएगा सम्मोहक बाण

उसे नहीं चाहिए द्रौपदी, नहीं चाहिए न्याय

वह तो जीतना चाहता है अभिलाषा

तेरी-मेरी- इसकी-उसकी सबकी

वाही तो है जो घुस गया है सबकी नथनों में

हवा में फैली मादक खुशबू की तरह .......

ऐसे में मेरा सच इतना भर है

कि मैं भयभीत तो हूँ

पर पहचानता नहीं !