माटी से धरती ने दीप यह बनाया है,
तूल से बनाई फिर कोमल तन बाती है,
तुमसे पा स्नेह-बूँद चेतना का सम्बल भी,
दूतिका तुम्हारी बन ज्योति झिलमिलाती है,
सागर से तम की चुनौती स्वीकार कर,
दीपशिखा रात को हराकर मुस्काती है,
शौर्य देख इसका अब सूरज तुम्हारा भी,
सौंप नित्य जाता इसे ज्वाला की थाती है।
प्रथम आयाम नामक संकलन से