Last modified on 22 मई 2010, at 22:48

अधर सुख से हों स्पंदित प्राण / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 22 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अधर सुख से हों स्पंदित प्राण,
बहे या विरह अश्रु जल धार,
फूल बरसें, या कंटक, वाण,
मुझे प्रभु की इच्छा स्वीकार!
तुम्हारी रुचि मेरी रुचि नाथ,
गहो या गहो न मेरा हाथ,
छोड़ दो जीर्ण तरी मँझधार
लगाओ या भव सागर पार!