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कूलर / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

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ठण्डी-ठण्डी हवा खिलाए ।
इसी लिए कूलर कहलाए ।।

जब जाड़ा कम हो जाता है ।
होली का मौसम आता है ।।

फिर चलतीं हैं गर्म हवाएँ ।
यही हवाएँ लू कहलाएँ ।।

तब यह बक्सा बड़े काम का ।
सुख देता है परम-धाम का ।।

कूलर गर्मी हर लेता है ।
कमरा ठण्डा कर देता है ।।

चाहे घर हो या हो दफ़्तर ।
सजा हुआ है यह खिड़की पर ।।

इसकी महिमा अपरम्पार ।
यह ठण्डक का है भण्डार ।।

जब आता है मास नवम्बर ।
बन्द सभी हो जाते कूलर ।।