Last modified on 30 जून 2010, at 14:34

आग में / सांवर दइया

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:34, 30 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>आकाश में गिद्धों की तरह तिर रहे हैं हवाई जहाज-हैलीकॉप्टर आग में…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आकाश में
गिद्धों की तरह तिर रहे हैं
हवाई जहाज-हैलीकॉप्टर
आग में ओटी हुई बाटी
उथलना भूल जाती हैं
चूल्हे के पास बैठी हुई औरतें
धमाके......धमाके.......धमाके
अब बाटी उथलने से क्या होगा ?
अब तो
सब कुछ आग में ही है !

अनुवाद : मोहन आलोक