Last modified on 3 जुलाई 2010, at 16:44

क्रियापद / दिनेश कुमार शुक्ल

कुमार मुकुल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:44, 3 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |संग्रह=ललमुनियॉं की दुनिया }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखना भी एक तरह का
हस्तक्षेप है
जब धूप में हम निकल आते हैं
तो कुछ न कुछ
बदलाव आ जाता है सूर्य में
हमारे चिल्लाने से
हिमालय की बर्फ के कुछ अणु ही सही
पिघलते हैं
जब हम पार करते हैं छोटी-सी नदी
तो कुछ न कुछ
जरूर पहुँचता है समुद्र तक

हो सकता है
कभी एक छोटा-सा विचार उठे
और
निर्मूल कर दे दुनिया का सारा दुख

कभी-कभी धरती भी रुककर
कान दे कर सुनती है कुछ लोगों की पदचाप
और
फर्क आ जाता है रात और दिन की
छोटाई-बड़ाई में ।