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क्रियापद / दिनेश कुमार शुक्ल
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					देखना भी एक तरह का 
हस्तक्षेप है 
जब धूप में हम निकल आते हैं 
तो कुछ न कुछ 
बदलाव आ जाता है सूर्य में 
हमारे चिल्लाने से 
हिमालय की बर्फ के कुछ अणु ही सही 
पिघलते हैं 
जब हम पार करते हैं छोटी-सी नदी 
तो कुछ न कुछ 
जरूर पहुँचता है समुद्र तक 
हो सकता है 
कभी एक छोटा-सा विचार उठे 
और 
निर्मूल कर दे दुनिया का सारा दुख 
कभी-कभी धरती भी रुककर 
कान दे कर सुनती है कुछ लोगों की पदचाप 
और 
फर्क आ जाता है रात और दिन की  
छोटाई-बड़ाई में । 
 
	
	

