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रचना / मोहन आलोक

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वह रचता है
और जब रच देता है
तो उस रचना में
रचने के लिए -
कुछ भी शेष नहीं बचता है ।

हो सकता है
वह रचना
आपको अधूरी सी लगती रहे
और उसकी पूर्णता हेतु
आपके भीतर
कोई जिज्ञासा जगती रहे ।
हो सकता है
आप किसी अन्य रचना के साथ
उसका मिलान करते रहें
और यों
अपने आपको नाहक परेशन
करते रहें ।

लेकिन वह रचना
जैसी भी होती है
जोअ भी होती है
पूरी होती है ।

कोई भी रचना
किसी अन्य रचना के सदृश्य
कब जरूरी होती है ?

अनुवाद : नीरज दइया