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Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : पर आँखें नहीं भरीं
  रचनाकार: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
कितनी बार तुम्हें देखा 
पर आँखें नहीं भरीं। 

सीमित उर में चिर-असीम 
सौंदर्य समा न सका 
बीन-मुग्ध बेसुध-कुरंग 
मन रोके नहीं रुका 
यों तो कई बार पी-पीकर 
जी भर गया छका 
एक बूँद थी, किंतु, 
कि जिसकी तृष्णा नहीं मरी। 
कितनी बार तुम्हें देखा 
पर आँखें नहीं भरीं। 

शब्द, रूप, रस, गंध तुम्हारी 
कण-कण में बिखरी 
मिलन साँझ की लाज सुनहरी 
ऊषा बन निखरी, 
हाय, गूँथने के ही क्रम में 
कलिका खिली, झरी 
भर-भर हारी, किंतु रह गई 
रीती ही गगरी। 
कितनी बार तुम्हें देखा 
पर आँखें नहीं भरीं।