रचनाकार: केदारनाथ अग्रवाल
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
सिर से पैर तक
फूल-फूल हो गई उसकी देह,
नाचते-नाचते हवा का
बसंती नाच ।
हर्ष का ढिंढोरा
पीटते-पीटते, हरहराते रहे
काल के कगार पर खड़े पेड़ ।
तरंगित,
उफ्नाती-गाती रही
धूप में धुपाई नदी
काव्यातुर भाव से ।
('पंख और पतवार' नामक काव्य-संग्रह से)