पाटल
कपोल के अरुणोदय के,
मुखर-मौन की
पंखुरियों को खोले,
तन्वी-तन की
तरुणाई के
मधु-पराग से पूरित,
गंध-गंध हो महकें,
मदन-मोद से
नर्तन में पद
मारुत-मन के बहके।
रचनाकाल: ०७-०६-१९७८
अमेरिकन सिनोमैटोग्राफर के दिसंबर, १९७७ के अंक के आवरण-पृष्ठ की बैले-नर्तकी को देखकर। मद्रास