Last modified on 18 अक्टूबर 2010, at 00:41

झूठ / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:41, 18 अक्टूबर 2010 का अवतरण ("झूठ / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झूठ-
अब झूठ नहीं;
त्रिपुंड लगाए
सच का अवतार हो गया;
रुद्राक्ष की
माला गले से
लटकाए
भाग्य-विधाता विधायक के
चरण चाँपकर,
दिग्विजय करने में
कामयाब हो गया।

आसमान में बहुत ऊँचे
उठ गया उसका ऐश्वर्य;
उद्दंड हो गया-
उसका मुस्तंड
दमन-चक्र
कि फरार हो गया-
कंकाल हो गया-
आतंकित सत्य।

निश्चय ही बरबाद हो गया देश
इस त्रिशूलधारी झूठ से।

रचनाकाल: १४-०६-१९७९