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याद / केदारनाथ अग्रवाल

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जैसे कुछ खोए और खोकर वह मिले नहीं
फिर भी उस खोए की याद बस रहे
वैसे तुम खोयीं मैं खोया
खोकर फिर मिले नहीं आपस में
याद ही बच रही।

रचनाकाल: ०३-१०-१९६०