Last modified on 12 नवम्बर 2010, at 13:46

आसार-ए-कदीमा/जावेद अख़्तर

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:46, 12 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जावेद अख़्तर |संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर }} [[Category:…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


एक पत्थर की अधूरी मूरत
चाँद तांबें के पुराने सिक्के
काली चांदी के अजब जेवर
और कई कांसे के टूटे बर्तन

एक सहरा में मिले
जेरें-जमी<ref>जमीं के निचे</ref>
लोग कहते है की सदियों पहले
आज सहारा है जहां
वहीँ एक सहर हुआ करता था
और मुझको ये ख्याल आता है
किसी तकरीब <ref>समारोह</ref>
किसी महफ़िल में
सामना तुझसे मेरा आज भी हो जाता है
एक लम्हे को
बस एक पल के लिए
जिस्म की आंच
उचटती-सी नजर
सुर्ख बिंदिया की दमक
सरसराहट तेरी मलबूस <ref>लिबास</ref> की
बालों की महक
बेख़याली में कभी
लम्स <ref>स्पर्श</ref> का नन्हा फूल
और फिर दूर तक वही सहरा
वही सहरा की जहां
कभी एक शहर हुआ करता था

साँचा:KK MEANING