Last modified on 1 दिसम्बर 2010, at 16:58

पतियारो / मदन गोपाल लढ़ा

थारै सूं हर करती बगत
कद सोची ही म्हैं
कै इण भांत
खिंड जावैला
आपणै सपनां रो संसार।

हणै ई
ओळूं रै ओळावै
म्हैं गोख आवूं
मन रै खुणां-खचूणां
उण दुनियां रो अैनाण।

म्हनैं पतियारो है !