Last modified on 7 दिसम्बर 2010, at 22:27

बेजा एहसास / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:27, 7 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिंदगी में
जहाँ भी
जिस तरह लोग रहते हैं
गंदे नाबदान की तरह
निरंतर बहते हैं,
आदमी होने का
बेजा एहसास करते हैं
दुर्गंध के
माहौल में
दिन-रात कलपते हैं

रचनाकाल: ०२-०९-१९७४