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अधर / प्रेमघन

मन्द महा मधु माधुरी कन्द,
नवात न वात की आवै विचार मैं।
ईख न लोची नहीं सरदा,
नहिं जामुन सेब कै तूत हजार मैं॥
चूसि लह्यो रसना घन प्रेम,
जो वा मधुराधर के सुधासार मैं।
सो रस के रस को नहिं लेसहु,
पाइए आम अँगूर अनार मैं॥