प्रोषित कहत तासों जाको है बिदेस ईस,
खंडित को कंत नित पर घ्ज्ञर बसावई।
कलहंत्र सो है जो किए कलह पछताइ,
बिप्रलब्ध नाँह को सहेट में न पावई।
उत्कंठ करै तर्क काहें तें न आए नांह,
बासक पी आवन तें आपको सजावई।
स्वाधीनपतिका पति के सदा ही आधीन रहै;
अभिसार साहस कै पीतम पैन जावई॥49॥