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कजली / 65 / प्रेमघन

रंडियों की लय

लगत मुरत तोरी नौकी रे साँवलिया॥टेक॥
सँवरी सूरत रस भरी अँखियाँ,
चितवन चोरनि जी की रे साँवलिया॥
बरसि प्रेमघन रसहि सुनाओ,
तनक तान मुरली की रे साँवलिया॥112॥