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कल / केदारनाथ अग्रवाल

कल
जब नई पीढ़ी
तुम्हें भोगते-भोगते-
जाँबाज
और जवान होगी,
देश के दर्द की तब उसे
सही और सटीक
पहचान होगी।

तब,
वह तुम्हें समझेगी;
शेर की तरह
तुम पर झपटेगी।

न बच पाओगे तुम;
न बच पाएगा
तुम्हारा
जंगली
जनतंत्र-
आदमियों के
मारने का
तुम्हारा चौमुखी
षड्यंत्र।

रचनाकाल: २८-०३-१९७९