Last modified on 27 अप्रैल 2013, at 08:16

कहीं पर ख़ुश्बूएँ बिखरीं, कहीं तरतीब उजालों की / पवन कुमार


कहीं पर ख़ुश्बूएँ बिखरीं, कहीं तरतीब उजालों की
बड़ी पुरकैफ़ हैं राहें तेरे ख़्वाबों ख़यालों की

पड़े रहते हैं कोने में लपेटे गर्द की चादर
हमारी जिंदगी तस्वीर है शेरी रिसालों की

उसी ने तीरगी से तंग आकर ख़ुदकुशी कर ली
हमेशा भीख देता था जो हम सबको उजालों की

किया यूं था कि हमने दिल के थोड़े राज खोले थे
हुआ ये है झड़ी सी लग गई हम पर सवालों की

वहाँ फिर किस तरह लड़ते हम आपस में भला यारों
जहाँ मस्जिद से होकर राह जाती है शिवालों की

तुम्हारे नाम से ही दिल की दुनिया जगमगाती है
हमें ख़्वाहिश कहाँ हैं चांद सूरज के उजालों की