Last modified on 21 फ़रवरी 2009, at 13:55

क़सम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता है / मुनव्वर राना

क़सम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता है
धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है

किसी दिन आँसुओ! वीरान आँखों में भी आ जाओ
ये रेगिस्तान बादल को ज़माने से बुलाता है

मैं उस मौसम में भी तन्हा रहा हूँ जब सदा देकर
परिन्दे को परिन्दा आशियाने से बुलाता है

मैं उसकी चाहतों को नाम कोई दे नहीं सकता
कि जाने से बिगड़ता है न जाने से बुलाता है

</ poem>