कालिन्दी के तीर, यहि विधि लीला नवल नव।
राधा श्री बलबीर, वृन्दावन मैं करत निति॥
मंगल राधा श्याम, मंगल मैं वृन्दाविपिन।
मंगल कुंज मुदाम, मंगल बद्रीनाथ द्विज॥
मंजुल मंगल मूल, जुगल सुमंगल पाठ यह।
पढ़त रहत नहिं सूल, जुगल जलज पद अलि बनत॥
कालिन्दी के तीर, यहि विधि लीला नवल नव।
राधा श्री बलबीर, वृन्दावन मैं करत निति॥
मंगल राधा श्याम, मंगल मैं वृन्दाविपिन।
मंगल कुंज मुदाम, मंगल बद्रीनाथ द्विज॥
मंजुल मंगल मूल, जुगल सुमंगल पाठ यह।
पढ़त रहत नहिं सूल, जुगल जलज पद अलि बनत॥