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धूमकेतु / लक्ष्मीकान्त मुकुल

उसके टुकड़े तेज धर बरछी की तरह
चले आ रहे हैं हमारी ओर
देखना मुन्ना
अभी टकरायेगा वह धूमकेतु
हमारी ध्रती से
और हम चूर-चूर हो जायेंगे
चांद-तारों के पार से
अक्सर ही आ जाता है धूमकेतु
और सोख ले जाता है हमारी जेबों की नमी
बाज की तरह फैले उसके पंजे
दबोच लेना चाहते हैं जब हमारी गर्दनें
पड़ जाता है अकाल
बुहार ले जाती है सबको महामारी
और गइया के थन झुराये-से
बिलखने लगते हैं बच्चे
कौवा नहीं उचरता हमारे छज्जे पर
सुगना बंद कर देता है गाना
हमारी जीभ भी पटपटाने लगती है
ऐसे नहीं आता धूमकेतु
ले आता है सदियों पुराना दस्तावेज
जिसमें मिल्कीयत लिखी होती है पृथ्वी
उसी के नाम
साथ लाता है मंदाकिनियां
और पद्मिनियां भी
जलते हुए ज्वालामुखी के क्रेटर-सा
खोज करता है कोई बारूदी सुरंग
हजारों परमाणु बमों का
परीक्षण कर रहा था वह अंतरिक्ष में
अब तुरंत आयेगा
हमारी ओर
अपने लश्करों के साथ
जितना हो सके अब
बचाना मुन्ना मेरी यादें
अपना गांव, अपनी हंसी
और दादी मां की कहानियां
बचाना
बस नुकीली चीख की ही तो देर है।