(5)
भारत-भूतल
शिखरिणी
सिता-सी साधें हो सुकथन सुधा से मधुर हो।
अछूते भावों से भर-भर बने भव्य प्रतिभा।
रसों से सिक्ता हो पुलकित क सूक्ति सबको।
विचारों की धारा सरस सरि-धारा-सदृश हो॥1॥
गीत
जय भव-वंदित भारत-भूतल।
शिर पर शोभित कलित क्रीट सम विलसित अचल हिमाचल॥1॥
कंठ-लग्न मुक्ता-माला-इव मंजुल सुर-सरि-धारा।
होता है विधौत पग पावन पूत पयोनिधि द्वारा॥2॥
मणि-गण-मंडित कान्त कलेवर तरु कोमल दल श्यामल।
सुधा-भरित नाना फल-संकुल सफलीकृत वसुधातल॥3॥
मधु-विकास-विकसित बहु सरसित शरद सितासित सुन्दर।
सुरभित मलय-समीर-सुसेवित सुखनिधि मंजुल मंदर॥4॥
नव-नव उषा-राग-आरंजित मन-रंजन घन-माली।
राका रजनी आयोजन रत लोकोत्तर छविशाली॥5॥
रुचिर पुरन्दर-चाप-विभूषित तारक-माला-सज्जित।
रविकर-निकर-कलित-आलोकित चन्द्र-चारुता-मज्जित॥6॥
नंदन-वन-समान उपवन-मय चन्दन-तरु-चयधारी।
लोक ललित लतिका कर-लालित ललामता अधिकारी॥7॥
खग-कुल-कलरव-कान्त कोकिला-आकुल-नाद-अलंकृत।
मुग्धकरी कुसुमावलि-पूरित अलि-झंकार-सुझंकृत॥8॥
मनभावन महान महिमामय पावन पद-परिचायक।
सुरपुर-सम सम्पन्न दिव्य-तम सप्तपुरी-अधिनायक॥9॥
सकल अमंगल-मूल-निकंदन भव-जन-मंगलकारी।
प्रेम-निलय 'हरिऔध' मधुर-तम मानस-सदन-विहारी॥10॥
द्रुतविलम्बित
वृषभ-वाहन है शशि-मौलि है।
वर-विभूति-विराजित गात है।
सुर-तरंगिणि है शिर-मालिका।
भरत-भूतल ही भव-मूर्ति है॥11॥
सतत है अवनीतल-रंजिनी।
कमल-लोचन की कमनीयता।
भुवन-मोहन है तन-श्यामता।
भरत-भूमि रमापति-मूर्ति है॥12॥
मलिन लोचन की मल-मूलता।
विविध मायिकता मनुजात की।
हरण है करती मद-अंधता।
भरत-भूतल-श्याम-स्वरूपता॥13॥
वसंत-तिलका
है हंसवाहन चतुर्मुख चारु-मूर्ति।
है वेद-वैभव-विकासक बुध्दि-दाता।
सत्कर्म-धाम कमलासनताधिकारी।
नाना विधन-रत भारत है विधाता॥14॥
वंशस्थ
रमा समा है रमणीयता मिले।
उमा समा है वन-सिंह-वाहना।
गिरा समा है प्रतिभा-विभूषिता।
विचित्र है भारत की वसुंधरा॥15॥