भोर तें भई है साँझ सखिन मनावति हैं
कैसहूँ न मान्यो प्यारी अति हीं रिसाइ कै।
तब पिय भेख लै सखी को सखि आपुन दै,
घात लाइ बैठे ढिग भामिनी के जाइ कै।
सखी कों समुझ लाल बाल मुख मोरत हीं
लागी ज्यों गहन सखी त्यों ही सतराइ कै।
नेह सों निहारि कर झारि झिझकारि नारि
रसलीन गरें में लपट गई घाइ कै॥86॥