मन को कोना-कोना
साफ़-सुथरा दीख रहा है
जैसे लिपा-पुता घर-आँगन
हलाक हुआ उतना अधिक
भर उठा है जितना
चमक रहा है एक बूँद सूरज कपोल पर
आँखों के रास्ते अड़ते-अड़ाते
उमड़ पड़ा है अथाह विश्वास
ख़ुद पर पहली बार
मन को कोना-कोना
साफ़-सुथरा दीख रहा है
जैसे लिपा-पुता घर-आँगन
हलाक हुआ उतना अधिक
भर उठा है जितना
चमक रहा है एक बूँद सूरज कपोल पर
आँखों के रास्ते अड़ते-अड़ाते
उमड़ पड़ा है अथाह विश्वास
ख़ुद पर पहली बार