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बकरी / अमरेन्द्र

उर्र बकरिया आवी जो
में में करी केॅ गावी जो

देह तोरोॅ भोकनोॅ-भोकनोॅ
बाल तोरोॅ चिकनोॅ-चिकनोॅ

लम्बा कान डुलावै छैं
केकरा तोहें बुलावै छैं

आँख कमल रोॅ कोढ़ी रं
सींग माथा पर बोढ़ी रं

सींग केॅ कैन्हें डुलावै छैं
हमरा तोहें डरावै छैं

है नै समझैं कि डरभौ
पीठी पर हम्में चढ़भौ

पूँछ तोरोॅ छौ फुदुर-फुदुर
बकरी, हिन्नें टुघुर-टुघुर ।