चलः हटः जिनि झाँसा पट्टी हमसे बहुत बघारः रामा।
हरि हरि फुसिलावः जिनि दै-दै बुत्ता बाला रे हरी॥
भोली गुनि भरमावः, काउ रिझावः? हम ना रीझब रामा।
हरि हरि समुझावः जिनि कैकै बहुत कसाला रे हरी॥
लालिच काठ दिखावः, हम ना पहिरब झुलनी झूमक रामा!
हरि हरि चम्पाकली, टीक, ना बुन्दा बाला रे हरी॥
आगि लगै तोहरी अरतारी-सारी, लहँगा चोली, रामा।
हरि हरि तुहऊँ कँ धरि खाय नाग कहुँ काला रे हरी॥
हम ना चाही राज पाट धन धाम तोहार गुलामी रामा।
हरि हरि नावँ और के लिखः मकान कबाला रे हरी॥
जिनि चुमकार पुचकारः बसि बहुत प्रेम दिखलावः रामा।
हरि बिना काम जिन भरः आह औ नाला रे हरी॥
असी बरिस कैभयः बूढ़ तूँ, जेस हमार परपाजा रामा।
हरि हरि हम बारहै बरिस कै अबहीं बाला रे हरी॥
पापी बेईमान! भला तैं कुकरम कवन बिचारे रामा।
हरि हरि! लाज धरम सब धोय धय पी डाला रे हरी॥
जब लग चढ़े जवानी हन पर तब तक तूँ मरि जाब्य रामा।
हरि हरि तब हमार फिर होयः कवन हवाला रे हरी॥
फेरि कैसे मन मिलै कहः तौ, मुरदा औ जिन्दा कै रामा।
हरि हरि होय प्रेम कैसे, जहँ रम कै ठाला? रे हरी॥
बुड़ि मरत्यः चिल्लू पानी मः, का मुहबाँ दिखलावः रामा।
हरि हरि भल चाहः तौ "रटः राम लै माला" रे हरी।
बूढ़े प्रेमी सुजन प्रेमघन की मुनि सीख बिचारौ रामा।
हरि हरि "तजौ बुढ़ाई में तौ गड़बड़ झाला" रे हरी॥140॥