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मिला नहीं जा सकता हर किसी से / शलभ श्रीराम सिंह

बात
हर किसी से की जा सकती है
मिला नहीं जा सकता है हर किसी से यहाँ

मिलना
हिस्सा हो जाना है किसी की ज़िन्दगी का
हो जाना है उसका अपनी शक्ति भर
होते जाना है जब-जब आए होने का अवसर

बात
दुनियादारी है सीधी-सीधी
सीधी-सीधी ख़रीददारी है लोक-हाट की
भाषा के ठाट की जानकारी देकर
लोग निकालते रहते हैं अपना काम
बात किसी से भी की जा सकती है यहाँ
मिलना हर किसी से कहाँ हो पाता है भला?

बात में
बचा रहता है बचाने लायक सब कुछ
मिलने में जाता है सब से पहले वही।
मन के भीतर
बचाने लायक कुछ भी झाँकता रहेगा जब तक
बात होती रहेगी केवल
बात हर किसी से की जा सकती है।

मिलना
मन को ले जाता है
तन को ले जाता है अपने साथ
अपने साथ जीवन को भी ले जाता है मिलना
मिलना हर किसी के साथ नहीं हो सकता है यहाँ


रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा