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मेहमान / योगेंद्र कृष्णा

युगों बाद

इस पृथ्वी पर

ऐसा मौसम आया है

सूखे खेतों की मेड़ों पर

नदियों की रेतों

पेड़ों की सूखी छालों पर

दसों दिशाओं में

जंगली फूलों और कांटों पर

मकड़ी के जालों पर

निर्जन गलियों की दरो-दीवार

और बुझते चिरागों पर

फिर से

जीवन का

अहसास उतर आया है

पता नहीं

किस दिशा से

किसका मेहमान इधर आया है