भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बीत चुके शहर में / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
बीत चुके शहर में
रचनाकार | योगेंद्र कृष्णा |
---|---|
प्रकाशक | संवाद प्रकाशन, 1-499, शास्त्रीनगर, मेरठ : 250 004, भारत |
वर्ष | 2008 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | |
पृष्ठ | 88 |
ISBN | 978-81-89868-41-3 |
विविध | मूल्य 75 रु |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- सुबह के पक्ष में / योगेंद्र कृष्णा
- हत्यारे जब बुद्धिजीवी होते हैं / योगेंद्र कृष्णा
- हत्यारे जब मसीहा होते हैं / योगेंद्र कृष्णा
- हत्यारे जब प्रेमी होते हैं / योगेंद्र कृष्णा
- कम पड़ रहीं बारूदें / योगेंद्र कृष्णा
- बीत चुके अपने शहर में / योगेंद्र कृष्णा
- ठीक ऐसे ही दिखते थे वो लोग / योगेंद्र कृष्णा
- वे दरिंदे फिर आएंगे / योगेंद्र कृष्णा
- इस शहर में भी / योगेंद्र कृष्णा
- घर-वापसी / योगेंद्र कृष्णा
- प्रेम का अनगढ़ शिल्प / योगेंद्र कृष्णा
- हर आदमी प्रतिपक्ष में खड़ा है / योगेंद्र कृष्णा
- आसमान से मेरा रिश्ता / योगेंद्र कृष्णा
- जूतों की आवाज में रोना / योगेंद्र कृष्णा
- ख्याल रखा जाता है / योगेंद्र कृष्णा
- स्पर्श-राग / योगेंद्र कृष्णा
- बारिश और सपने / योगेंद्र कृष्णा
- संगीत का आभास / योगेंद्र कृष्णा
- बूढी स्मृतियों की धूमिल छायाएं / योगेंद्र कृष्णा
- पहचान / योगेंद्र कृष्णा
- पत्थर के निशान / योगेंद्र कृष्णा
- संवेदना की मौत पर / योगेंद्र कृष्णा
- खोई दुनिया का सुराग़ / योगेंद्र कृष्णा
- मिट्टी से जुड़ी आकांक्षाएं / योगेंद्र कृष्णा
- दीवार / योगेंद्र कृष्णा
- मर्द की मूंछ / योगेंद्र कृष्णा
- हमारे हिस्से की / योगेंद्र कृष्णा
- रोटी से निकले लहू के निशान / योगेंद्र कृष्णा
- मील के पत्थर / योगेंद्र कृष्णा
- अपना चेहरा / योगेंद्र कृष्णा
- मेहमान / योगेंद्र कृष्णा
- पूर्वजों के गर्भ में ठहरा समय / योगेंद्र कृष्णा
- शिलालेख / योगेंद्र कृष्णा
- भीड़ मौसम और पहाड़ / योगेंद्र कृष्णा
- मुझे क्या पता था / योगेंद्र कृष्णा
- एक बदहवास दोपहर / योगेंद्र कृष्णा
- चट्टान चुप्पियां / योगेंद्र कृष्णा
- दिल्ली में पहली बार / योगेंद्र कृष्णा
- मैदान की जीत / योगेंद्र कृष्णा