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एक बदहवास दोपहर / योगेंद्र कृष्णा
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पतझड़ की एक बदहवास दुपहरिया में
मेरा समुंदर कहीं खो गया
मैं प्यासा न भी था
तो अब हो गया
पता नहीं
मौसम की यह बदहवासी
अब किधर जाएगी
किस मासूम प्यार पर
अपना दोपहर बरसाएगी