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हर आदमी प्रतिपक्ष में खड़ा है / योगेंद्र कृष्णा

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तुम्हें याद होगा

तुम्हारी बस्ती से जब

धुआं उठता था

कोई तीखी सड़ांध फैलती थी

तो आसपास के लोग

दौड़े चले आते थे

जब इंसानी जिंदगी

छोटे-छोटे प्रश्नों से टकराती थी

तो पूरी बस्ती में उसकी अनुगूंज

दूर तक सुनी जाती थी

लेकिन अब तो

पूरा का पूरा यह मुल्क ही

इंसानी प्रश्नों के सामने

बहुत बड़ा प्रतिप्रष्न बन कर खड़ा है

और आम आदमी

पीठ पर लदे

अपने प्रश्नों के साथ

औंधे मुंह पड़ा है

उसकी बदहाली का

हवाई जायजा लेने निकला

विशिष्ट दस्ता भी

उसे भेड़ समझने पर अड़ा है

और मुल्क के सीने पर बैठा आदमी

अफीम की लोरियां सुना कर

उसे सुलाए रखने के लिए

रात-रात भर जगा है

उसे तो विश्व का पट एक बार

पूरी तरह खुल जाने का इंतजार है

मंडी में वह उसकी

औकात बताना जानता है...

उसकी नजर में दरअसल

आदमी की पीठ पर लदा

हर आम सड़ा है

क्योंकि प्रतिप्रश्न बने

इस मुल्क का

हर आदमी

प्रतिपक्ष में खड़ा है...