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रोटी से निकले लहू के निशान / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
याद है
दृश्य अदृश्य
हर उस शख्स का चेहरा
मुझे अच्छी तरह याद है
जिसने
इस पृथ्वी पर
निरंतर
दूसरों के हिस्से की जंग
सिर्फ अपने पक्ष में जीती है
मुझे हर उस शख्स का चेहरा
अच्छी तरह याद है
जिसने सुरक्षित कर रखे है
अपने पास
हमारी जंग के आधे-अधूरे
हथियारों के सर्वाधिकार
हां
मुझे याद है
हर जंग में
हमारे हिस्से की
रोटी से निकले...
नहीं
हम अपनी जंग
उनके हथियारों से
नहीं लड़ सकते
उन हथियारों में
आज भी ताजा हैं...
हमारे हिस्से की
रोटी से निकले
लहू के निशान