भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हत्यारे जब प्रेमी होते हैं / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
हत्यारे जब प्रेमी होते हैं
वे तुम्हें ऐसे नहीं मारते...
वे तुम्हें, तुम्हारी मां
या तुम्हारे बच्चों में
कोई फर्क नहीं करते
वे उन सब के साथ
एक ही जगह
एक ही समय
रच सकते हैं
सामूहिक प्रेम का
नया कोई शिल्प
बुखार में तपती
तुम्हारी देह के साथ भी
वे अपने लिए
रच सकते हैं
वीभत्स मांसल आनंद का
नया कोई निर्वीर्य संस्कार
और इस तरह
वे रह सकते हैं
तुम्हारी देह से अविरत आबद्ध...
तुम्हारी अंतिम सांस के
स्खलित हो जाने तक...