Last modified on 14 अक्टूबर 2013, at 14:38

रंग-राग / प्रताप सहगल

हरियाली जब
यौवन का राग अलापती
हमारे दरवाज़े पर खड़ी हो
और उसकी आंखों से
झरता हो
स्वप्निल आकाश
आकाश से झांकती हो
आशीर्वचनी मुद्राएं
तो यह वक्त
फिर से जवान होने का है
फिर से जवान होकर
आओ बिखेरे कोई नया रंग
रंग में हो यौवन
रंग में हो राग
रंग में हो उमंग
आओ बिखेरे कोई नया रंग।