वक़्त का सिलसिला यों ही चलता रहा
और करता रहा बागियों को सलाम !
यों गुज़रता रहा रात-दिन ज़ुल्म से
हर बग़ावत से पाता नया इक मुकाम।
अपने–अपने समय के मेरे बाग़ियो
इस समय का तुम्हारे समय को सलाम !
हर बग़ावत ने जो भी नया कुछ रचा-
गीत, नग्मा, रुबाई, ग़ज़ल को सलाम !
सिलसिलों को सलाम, मंज़िलों को सलाम
आने वाले तेरे-मेरे कल को सलाम !
साल का एहतेराम