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वज़न/ जयप्रकाश मानस

धरती का वैभव उँचाई आकाश की

सूरज की चमक या हो

चंदा की चांदनी

पूरी भलमनसाहत

सारा-का-सारा पुण्य

समूची पृथ्वी पलड़े में

चाहे रख दो सावजी

डोलेगा नहीं काँटा

रत्ती भर

किसी ने रख दिया है चुपके से

रत्ती भर प्रेम दूसरे पलड़े में