Last modified on 3 मार्च 2008, at 20:52

वापसी / जयप्रकाश मानस

पाँव में छाले घूमकर पथरीले रास्ते

गुम हो गयी इन घाटियों में कि सामने पहाड़

स्मृतियों के कोहरों में झाँक-झाँक जाते

पिछले ज़हरीले दिनों के कोलाज

कि युद्ध में लोहूलुहान घायल कोई अचेत सैनिक

उठ खड़ा क्षीण-छायावत


आज वे सभी थके हारे

लौटने के लिए इकट्ठे हैं इन वीरान घाटियों में

अपनी छोटी-सी दुनिया में लौट जाने के लिए

समूची दुनिया ग़ायब होने से पहले

बचा लेने के लिए


अब उनके पास कुछ भी शेष न रहने के बाद भी

एक चीज़ है और वह है लबालब

लौटने की मुस्कान, चमक आँखों में

कि सामने को ख़तरनाक पहाड़ भी सिजदे करे

इस ख़ुशी में बन्दगी में