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12:44, 27 दिसम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=बहादुर शाह ज़फ़र
|संग्रह=
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<poem>
रात भर मुझको गम-ए-यार ने सोने न दिया
सुबह को खौफे शबे तार न सोने न दिया
शम्अ की तरह मुझे रात कटी सूली पर
चैन से यादे कदे यार ने सोने न दिया
यह कराहा दर्द के साथ तेरा बीमार-ए-अलम
किसी हमसायें को बीमार ने सोने न दिया
ए दिल-ए-जार तु सोया किया आराम से रात
मुझे पल भर भी दिल-ए-जार सोने न दिया
सोऊं मैं क्या कि मेरे पांव को भी जिन्दां में
आरजू-ए-खलिश-ए-यार ने सोने न दिया
यासो-गम रंजो-ताअब मेरे हुए दुश्मने-जां
ऐ जफर, शब इन्हीं दो-चार ने सोने ना दिया
</Poem>