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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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देखकर बस इक नज़र उसको दिवाना कर दिया
"मार डाला मरने वाले को के अच्छा कर दिया"

डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत
शुक्रिया, तूफ़ान का, उसने किनारा कर दिया

जब भी जाना उसके घर तो कहना मेरा भी सलाम
और ये कहना के जो उसने कहा था, कर दिया

उम्र भर सब पर रहेगा क़र्ज़ माँ के दूध का
कोई कह सकता नहीं ये क़र्ज़ चुकता कर दिया

कुछ हुआ करता था तेरा और कुछ मेरा 'रक़ीब'
दो मुलाक़ातों ने देखो सब हमारा कर दिया
</poem>
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